अभूतपूर्व कवि- पृष्ठ 7/7

सोच लो, यदि वह आ गईं,
तो उन्हें कैसे मनाओगे?
उसे चुप कराने के लिए,
सब्ज़ी कहाँ से लाओगे?

इतने में, चार श्रोताओं ने, मुझे उठाया,
और पंडाल से बाहर खड़ा कर दिया,
और हाथ जोड़ कर कहा,
कृपया आप यहाँ से जाएँ,
और अपनी कविता कहीं और जाकर सुनाएँ।

मैंने कहा, सही है,
हीरे को हर कोई नहीं परख सकता,
पर मेरी टोकरी तो मेरी है,
उसे तो कोई नहीं रख सकता।

मेरी टोकरी दे दीजिए, मैं यहाँ से जाता हूँ,
और जा कर अपनी कविता,
किसी सब्ज़ी मार्केट में सुनाता हूँ।

माना मैं अपनी कविता यहाँ नहीं सुना सकता,
पर मेरी भी कुछ मजबूरी है,
सब्ज़ी लिए बिना आज मैं भी,
घर वापिस नहीं जा सकता।

***** समाप्त *****

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *