अभूतपूर्व कवि

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तूफान के आसार थे,
बादल घिर रहे थे,
मुर्झाए, सुस्ताए सर भी अब बखूब फिर रहे थे।

मैंने सोचा इस शोरगुल में तो सब जाग जाएंगे,
और इस मनहूस की हालत के लिए
मुझे ही दोषी ठहराएंगे।
इनका ध्यान बाँटने का प्रयत्न करना चाहिए
इन्हें खुश करने का,
कोई यत्न करना चाहिए।

इतने लोगों को जगा देख,
मेरा कुछ साहस बढ़ा
और मैंने एक छन्द और पढ़ा
इतने में एक छोटा सा टमाटर
मेरे मुंह पर पड़ा।
पंडाल में स्वर उभरा, बड़ा-बड़ा
मैं बड़ा सा पद्य सोचने लगा
एक टमाटर जो काफी बड़ा था,
दूसरे ही पल मेरे पास आन पड़ा।
मुझे सारी बात समझ आ गई

सजग प्रेहरी की तरह मैंने पोजीशन ले ली
जो काफी सुरक्षित थी,
मानों मुझसे कवियों के लिए आरक्षित थी।
थोड़ी सी माइक से परे, पर्दे की आड़ में
कविता तो गई भाड़ में,

लोग कवि के लिए टूट पड़े थे।
हम ही थे जो अब भी खड़े थे,
वर्णा ऐसे माहौल में तो आम कवि भाग जाते हैं,
क्योंकि शोर सुनकर,
सोए हुए लोग भी जाग जाते हैं।

पर मैं कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था,
एक्सपीरिएन्स्ड था, फील्ड में कोई अनाड़ी नहीं था।
चारों ओर नज़र घुमा रहा था,
हर वार से खुद को बचा रहा था।

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