अभूतपूर्व कवि - पृष्ठ 5/7
मैं झूठ नहीं कहता,
आज भी मैं खाली हाथ नहीं आया हूँ,
कलेक्शन के लिए टोकरी साथ लाया हूँ।
इसलिए आप न सोचिए–विचारिए,
जितना जी में आए टमाटर मारिए।
बस इतनी कृपा कीजिए, मेरी राय लीजिए,
हो सके तो कभी कुछ और भी चुन लीजिए।
आखिर हम भी इंसान हैं,
वेरायटी एक्सपेक्ट करते हैं।
वैसे तो जो भी आप देते हैं,
हँसते-हँसते एक्सेप्ट करते हैं,
फिर भी आप यदि वेरायटी देंगे तो अच्छा रहेगा,
मेरा भी कवि सम्मेलनों में इंटरेस्ट बना रहेगा।
हर सम्मेलन के लिए तैयार हो कर आऊँगा,
आप की मनपसंद कविताएं,
जी भर कर सुनाऊँगा।
सुन कर मेरा तर्क, पब्लिक में शांति छा गई,
शायद थी उन्हें मेरी बात, कुछ समझ आ गई।
कुछ लोग आगे बढ़ने लगे, स्टेज पर चढ़ने लगे।
मैंने सोचा वे आ रहे हैं,
टमाटर ले जाना चाह रहे हैं।
इससे पहले कि वे स्टेज पर पहुँचें,
मैं टमाटर इकट्ठे करने लगा।
एक श्रोता मेरे पास आया,
कालर पकड़ कर उसने मुझे उठाया,
और बोला,
“आप स्टेज से उतरने का क्या लेंगे?”
मैंने कहा, “आप के पास है ही क्या, जो आप मुझे दोगे?
अभी आप ने मुझे दिया ही क्या है?”
इन टमाटरों के साइज पर, आपने गौर किया है?
अब ये टमाटर खा कर, कोई कालिदास नहीं बन सकता,
मामूली सा कवि भले ही बन जाए,
पर कुछ खास नहीं बन सकता।”