अभूतपूर्व कवि
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कभी-कभी मैं झुक जाता,
तो एक-आध टमाटर आयोजक (जो मेरे पीछे बैठा था)
तक भी पहुँच जाता।
आयोजक, जो अपनी गलती पर पछता रहा था,
सामने आने से घबरा रहा था
मैं, उसके एहसान का बदला चुका रहा था,
अपने हिस्से के टमाटर उस तक पहुंचा रहा था।
जब स्टेज टमाटरों से भर गया,
तो मेरा ध्यान श्रोताओं की जेब पर गया,
जो धन बर्बाद कर टमाटर लाए थे।
बड़े अरमान से मेरी कविता सुनने आए थे
मैंने एक लम्बी साँस खेंच कर कहा, ‘दोस्तो’
उचित यही होगा, कि आप अब बस करो,
क्योंकि मैं बस नहीं करने वाला हूँ
इन टमाटरों से मैं भला क्या डरने वाला हूँ ?
आज मैं अपनी कविता सुना कर ही रहूँगा |
आप से लोहा मनवा के ही रहूँगा |
ये टमाटर तो मैं सारे घर ले जाऊँगा
और जाकर मैं इनकी चटनी बनाऊँगा |
काफी मंदी चल रही है
न्यौता कोई आता नहीं
और कविता करने के इलावा
मुझे और कुछ भाता नहीं
आजकल वैसे ही सब्ज़ी बड़ी मंहगी है,
कौन खरीदने जाए
सच मानो तो हम इसीलिए ही हैं
आज यहाँ कविता कहने आए |
आप लोगों का यदि सहारा न होता ,
तो मेरा तो इस मंहगाई में गुज़ारा न होता |
हम से यहाँ मेरा संकेत मेरे परिवार की ओर है
जिसे मैं अपने साथ लाया हूँ
सच मानो,
मैं आज पूरी प्लानिंग कर के आया हूँ |