Abhootpoorv Kavi Page 3

अभूतपूर्व कवि

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कभी-कभी मैं झुक जाता,
तो एक-आध टमाटर आयोजक (जो मेरे पीछे बैठा था)
तक भी पहुँच जाता।

आयोजक, जो अपनी गलती पर पछता रहा था,
सामने आने से घबरा रहा था
मैं, उसके एहसान का बदला

Abhootpoorv kavi page 2

अभूतपूर्व कवि

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तूफान के आसार थे,
बादल घिर रहे थे,
मुर्झाए, सुस्ताए सर भी अब बखूब फिर रहे थे।

मैंने सोचा इस शोरगुल में तो सब जाग जाएंगे,
और इस मनहूस की हालत के लिए
मुझे ही दोषी

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Yeh kavita ka pehla bhaag hai. Bahut hi mazakiya hai!

वेटर मियाँ

शादी के कुछ दिन बाद हिम्मत कर
मैंने कहा अपनी पत्नी से –
आज फिर हो जाए कुछ खाना…
वो लजाई, थोड़ा मुस्कुराई, …

Hello world!

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