Grihasth Ashram Page 2

गृहस्थ आश्रम

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अध्याय 1 - बीवी को पत्र

तुम थीं घर में तो कुछ कायदा,क़ानून था।
चाहे दूध वाले का साल से पेंडिंग हनीमून था।
फिर भी वह तुम्हें इज़हार न कर सका।
ले जा कर गवालन को

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एलर्जी टेस्ट

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उस डॉक्टर से मैं जा कर, पता लगाना चाहता हूँ,
कि इन चीज़ों को हाथ लगा कर, अगर मेरी पत्नी मरेगी,
तो मेरे घर का काम क्या,
उस साले की माँ करेगी?

न जाने कहाँ कहाँ

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एलर्जी टेस्ट

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दरअसल रहना तो तुम वहीं चाहती हो।
यहाँ तो बस चन्दा लेने आती हो।
और हम उल्लू बस यूँ ही जिए जा रहे हैं।
अपनी मेहनत की कमाई चंदे में दिए जा रहे हैं,
उस पत्नी

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मूँछ

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फिर भी छींको अगर एकान्त में "सर",
तो ही रहेगा बेहतर,
कहीं कोई खड़ा हो देखता सर पर,
और मूँछ आ गिरे रुमाल पर।

और इस से पहले कि तुम उसे वापिस लगा लो,
दर्शक बोले, भाईसाहब

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मूँछ

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कैसे होंगे प्रसन्न भला हम,
तुम्हें कैसे अब समझाए।
तुम रहो व्यस्त काम में,
और मूँछों के बल खुल जाए।

मेरी मानो तो काम से कर लो बिल्कुल किनारा,
"कम टुमौरो ही कह दिया करो,
और मूँछ

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मूँछ

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कहाँ रोज‌ रोज फिर सुबह सवेर,
करनी पड़ती इन की "केयर".
जब आफिस को होती हो देर,
साथ ही पत्नी का लेक्चर चलता हो।

कहाँ संवरती हैं मूँछें,
गुस्से में जब मन जलता हो।
हर वक्त यही

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अभूतपूर्व कवि- पृष्ठ 7/7

सोच लो, यदि वह आ गईं,
तो उन्हें कैसे मनाओगे?
उसे चुप कराने के लिए,
सब्ज़ी कहाँ से लाओगे?

इतने में, चार श्रोताओं ने, मुझे उठाया,
और पंडाल से बाहर खड़ा कर दिया,
और हाथ जोड़

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अभूतपूर्व कवि - पृष्ठ 6/7

इतने छोटे टमाटर देख कर,
कोई भी चुप कर जाता,
वो तो हम ही हैं जो कहे जा रहे हैं।
सरासर नाइंसाफी हो रही है,
फिर भी चुप रह कर सहे जा रहे हैं।

और

Abhootpoorv Kavi Page 5

अभूतपूर्व कवि - पृष्ठ 5/7

मैं झूठ नहीं कहता,
आज भी मैं खाली हाथ नहीं आया हूँ,
कलेक्शन के लिए टोकरी साथ लाया हूँ।

इसलिए आप न सोचिए–विचारिए,
जितना जी में आए टमाटर मारिए।

बस इतनी कृपा कीजिए, मेरी राय

Abhootpoorv Kavi Page 4

अभूतपूर्व कवि

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टमाटर तो क्या,
बच्चे, जब अण्डे खाना चाहते हैं,
तो हम किसी कवि सम्मेलन में,
बिन बुलाए ही पहुँच जाते हैं।

स्टेज पर चढ़ते हैं,अण्डे जब पड़ते हैं,
तो हम कलैक्ट कर लेते हैं।
घर ले