अभूतपूर्व कवि

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टमाटर तो क्या,
बच्चे, जब अण्डे खाना चाहते हैं,
तो हम किसी कवि सम्मेलन में,
बिन बुलाए ही पहुँच जाते हैं।

स्टेज पर चढ़ते हैं,अण्डे जब पड़ते हैं,
तो हम कलैक्ट कर लेते हैं।
घर ले जाते हैं फिर उन्हें और,
ऑमलेट और फ्राइड ऐग्ज़, बना-बना कर खाते हैं।

बच्चे तो बच्चे उनकी माँ भी खुश हो जाती है,
चाहते हुए भी लिखने से, मुझे रोक नहीं पाती है।
मुझ से शादी रिगरेट नहीं करती,मुस्कुरा देती है,
मेरे लाभ शून्य शौक पर, कभी ऑब्जेक्ट नहीं करती।

अपनी ज़रूरतों की लिस्ट,
मुझे हर महीने दे देती है।
उसी हिसाब से मैं फिर कविता बनाता हूँ
लोगों का स्टैण्डर्ड देख कर ही
मैं अपनी कविता सुनाता हूँ।

जिस दिन जूते पड़ने का चाँस होता है,
मैं उस दिन तो ज़रूर फैमिली को साथ लाता हूँ,
कोई घिसी-पिटी कविता सुनाता हूँ।

जूते जब पड़ते हैं,
घर के सदस्य सब स्टेज पर चढ़ते हैं,
और अपना-अपना साइज चुन लेते हैं,
इसी बहाने मेरी कुछ कविता भी सुन लेते हैं।

जब मैडम को सैंडल पसंद नहीं आती है,
तो वह इशारा कर देती है,
मैं कविता की पंक्तियाँ भूल जाता हूँ,
या कोई चुराई हुई कविता अपनी कह के सुनाता हूँ।

‘दोस्तो’! काफी दिन से बीवी,
सैंडल की रट लगा रही है,
पर क्या करें, किसी अच्छे स्टैंडर्ड के आयोजकों से,
कोई कॉल ही नहीं आ रही है।

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