Page 2: Beech Ka Bhaag

Ab yeh kavita ka doosra hissa hai — yahaan se hasi aur bhi badhti hai!

वेटर मियाँ

शादी के कुछ दिन बाद हिम्मत कर
मैंने कहा अपनी पत्नी से –
आज फिर हो जाए कुछ खाना…
वो लजाई, थोड़ा मुस्कुराई, फिर बोली –
“फिल्मी कि ग़ैर-फिल्मी?”

उत्तर से मैं चौंका,
फिर भी शॉक को दबाए बोला –
“वही, जो तुम्हारे मन को भाए…
आज तो हो ही जाए।”

थोड़ा सोचकर, गला साफ कर, वो बोली –
“क्या गाना बिन ताल के?”
मैंने कहा – “क्यों खाना बिन दाल के?”

“दाल ही क्यों, कोई सब्ज़ी भी बनाओ,
आज तो बढ़िया सा खाना अपने हाथ से बना कर खिलाओ।”

उसका मूड ऑफ हो गया,
उठकर वो चल दी…
और बेडरूम में जाकर रोने लगी।

मैंने सोचा, श्रीमती जी थीं रसोई में –
शायद चावल धोने लगीं।
जब देर तक कोई हरकत की आवाज़ नहीं आई,
तो मैं रसोई में गया, वहाँ नहीं पाया।

घबराया… बेडरूम में आया –
तो देखा, मैडम सो रही थीं,
या शायद मुँह छुपाए रो रही थीं।

मैंने ऊँचे स्वर में कहा –
“ये क्या हो रहा है इस घर में?
मैंने सोचा तुम खाना बना रही हो,
और तुम यहाँ लंबी पड़ी खर्राटे मार रही हो?”

वो उठी और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी,
धुंआधार आँसू बहाने लगी।

मैंने कहा – “क्यों नयन भिगोती हो?
ज़िंदा हूँ मैं, तुम भला क्यों रोती हो?”

“क्या तुम्हें माँ की याद है सताती?
भूल जाओ बचपन के रेले अब,
उठो बनाओ कुछ सब्ज़ी और चपाती।”

कहने लगी – “मुझे नहीं पता था,
मेरा पति मुझसे खाना भी बनवाएगा!
मैंने तो सोचा था – मेरा गाना सुन खुश हो जाएगा,
कभी बाहर खिलाने ले जाएगा,
और कभी खाना बाहर से मंगवाएगा!”

मैंने कहा –
“देवी जी, आप श्रीमती हैं, श्रीदेवी नहीं,
और मैं पति हूँ केवल – पति देव भले मानो,
पर भगवान के लिए मुझे देवानंद न जानो!”

“हो चुकी है शादी हमारी,
दिन लद चुके हैं खेल के –
गृहस्थ की गाड़ी नहीं चलती बिन राशन और तेल के।”

“हकीकत है यह ज़िंदगी,
कोई पिक्चर की शूटिंग नहीं है,
घर है यह एक गरीब का,
कोई ‘पिज्ज़ा हट’ या ‘बर्गर किंग’ नहीं है।”

“होटल तो बहुत दूर की बात है,
मैं तुम्हें वहाँ तो नहीं ले जा पाऊँगा –
हाँ, कहो यदि तो साल में एक-आध बार,
चाट ज़रूर खिला लाऊँगा।”

सुनकर वो और ज़ोर ज़ोर से रोने लगी,
‘बॉम्बे डाईंग’ की नईं बेडशीट
आँसुओं से भिगोने लगी।

मैं ज़रा घबरा गया,
उसके निकट आ गया –
कंधे पर रखा हाथ और कहा –

“प्रिय, व्यर्थ क्यों आँसू बहा रही हो?
अमूल्य नमक शरीर का बेकार गँवा रही हो।”

उसने कहा –
“मैं सप्ताह में दो बार चाट ज़रूर खाऊँगी,
फिर बृहस्पत को चिकन और संडे को मीट भी,
रोज़ शाम को आइसक्रीम, और कभी-कभी स्वीट्स भी।”

मैंने कहा – “समझ गया देवी जी मैं सब,
आप रहने दो, सो जाओ, आराम करो,
मैं ही खाना बनाया करूँगा,
तरह-तरह के व्यंजन घर पर ही खिलाया करूँगा।”

“केवल आप से विनती है –
बस इतना करम किया करना,
रोज़ खाना खाकर मुझे टिप ज़रूर दिया करना।”

“करके टिप इकट्ठा हफ्ता भर,
मैं आपको घुमाने ले जाया करूँगा –
आइसक्रीम, चाट और स्वीट्स भी खिलाया करूँगा।”

“यदि आपको ऐसा करने में कोई आपत्ति न हो तो –
शीघ्र ही बताओ,
मैं जीवन को उपयोगी बनाऊँ,
और आज ही दर्ज़ी को सफ़ेद वर्दी का नाप देकर आऊँ।”

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