मूँछ

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फिर भी छींको अगर एकान्त में "सर",
तो ही रहेगा बेहतर,
कहीं कोई खड़ा हो देखता सर पर,
और मूँछ आ गिरे रुमाल पर।

और इस से पहले कि तुम उसे वापिस लगा लो,
दर्शक बोले, भाईसाहब अपनी मूँछ सम्भालो।

बस फिर आजीवन पछताओगे,
नकली हो या असली,
नकली वाले ही जाने जाओगे,
लोग चेक करने को,
न जाने क्या क्या करेंगे,
हेलो करने के बाद,
शायद इन्हें खींचा करेंगे।

असली होंगी तो दर्द करेंगी,
नकली चेहरा ज़र्द करेंगी।

इसलिए झगड़ा ही खत्म कर डालो,
इनको जड़ से ही कटवा लो।

पर ऐसा घर पर ही करना,
लेकर पत्नी की राय,
नहीं तो कहीं तुम्हें पहचानने से,
वो मुकर ही न जाए।

एक दिन जाओ तुम घर,
रास्ते से मूँछें कटवा कर,
और नज़र पलट चल दे मैडम,
समझ तुम्हें ज्येष्ठ या देवर,
सोचो ज़रा क्या होगा तब।

पत्नी निकाल घूँघट चल देगी जब।
होगा एक और प्रहार प्रबल,
जब बच्चे पुकारेंगे — अंकल, अंकल।

खैर जो जी में आये करो भई,
तुम्हारी ही चीज है।
हमने तो बात सयानी कही है,
न ही कटवाना इसे,
यदि बची मर्दानगी की निशानी यही है।

******समाप्त******

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