गृहस्थ आश्रम
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अध्याय 2 - बीवी को जवाब
पता नहीं मुझे तुम्हारी कोई थी, कि बस तुम दीवाने थे।
मुझे तो लगता है वे सब ख्वाब थे तुम्हारे , शायरी के बहाने ही थे।
पर अगर मेरे हाथ कोई सुबूत लग गया तो पछताओगे।
एक तो मिली नहीं और दूसरी हाथ से गँवाओगे।
मेरे लिए तो यह धमकी ही काफी थी।
मेरे भाग में तो खुदा ने लिखी बस गुज़ारिश-ए-माफी ही थी।
हिम्मत कर के मैंने खट आगे पढ़ा
आखिर कर दिया न सत्यानास डिन्नर सेट का।
दोस्तों के साथ गुल्छरे उड़ाने का अंजाम,
और होगा भी क्या।
और जो कोई बचे हों दोस्त तो उन्हें भी बुला लो।
बाकी बचे सेट का भी कबाड़ा कर डालो।
वहाँ तो चैन नहीं मिला कभी,
सोचा था यहाँ दो दिन आराम से बिताऊँगी,
पर क्या था मुझे पता कि, तुम से शादी कर के,
मैं उम्र भर पछताऊँगी।
अब जो कुछ बचा है घर में,
उसे बेच डालो।
या घर के बाहर ही तुम दुकान लगा लो।
कम से कम लोग मुफ्त तो नहीं ले जायेंगे।
मेरी मेहनत की कुछ तो कीमत लगायेंगे।
आती हूँ जल्दी ही मैं सब संभाल लूँगी
कटोरियाँ और राशन मैं सब से निकाल लूँगी।
वर्मी ( Mrs. Varma) की तो हद है बेशर्मी की।
मुझे तो कहती थी वर्मा को शूगर है।
हम तो घर में मीठा कुछ बनाते नहीं हैं।
मिठाई तक बाज़ार से मंगवाते नहीं हैं।
और मेरे पीछे से खीरें पकाई जा रही हैं।
मेरी ही चीज़ें उड़ाई जा रही हैं।
मेरा भी नाम मिनाक्षी नहीं
अगर उन्हें सीधा न किया तो।
वर्मा को हार्ट अटैक,
और वर्मी को ब्लड प्रेशर न दिया तो।