कांपते हुए हाथों से मैंने उसे खोला
घबराई हुई नज़रों से संबोधन टटोला।
My Dear Navneet
खुद को "डीयर" पढ़ कर मेरा साहस बड़ा,
और मैंने ख़त को आगे पढ़ा।
प्रेरणा, कविता, शांति - यह सब क्या है?
पत्नी को पत्र और महबूबा को
कलाम लिखने में फर्क होता है।
जो पति नहीं समझता यह,
उसका तो बेड़ा गर्क होता है।
घर तंदूर होता है उसके लिए,
और बाहर नरक होता है।
तुम क्या सोचते हो तुम कवि हो तो,
बाकि सब बेवकूफ हैं?
जब चाहो जिसे उल्लू बना लो?
शब्दों का जाल फैंक के मोहित कर दो,
उलझा दो, रूझा लो ?
हो चुकी है तुम्हारी शादी ,
मैं तुम्हें याद दिलाती हूँ।
अब नहीं तुम्हें पहले सी आज़ादी ,
अभी प्यार से समझाती हूँ।