सरदार करतार सिंह दुग्गल, कॉटेज के मालिक, एक अस्सी वर्षीय, या शायद नव्वे साल के बुज़ुर्ग थे। मोटे बोतल के शीशों वाले चश्मे और झुर्रियों से भरे चेहरे के साथ, वे बीते युग
उस दिन मैं घर नहीं आया था। नई-नई नौकरी थी मेरी, काम बड़ा था। मुझे ट्यूबवेल लगा रही कंपनी के काम को देखने के लिए फैक्ट्री में ही रुकना पड़ा था। बात उन दिनों