चाय की दुकान

चाय की दुकान

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चाय की दुकान

जब मेरी कविता एक अखबार में छपी,
प्रेस रेपोरटर्ज़ (पत्रकार) घर आने लगे,
सुबह शाम घर के चक्कर लगाने लगे ।

पहले-पहल तो मैं फूला न समाता ।
साक्षात्कार

अभूतपूर्व कवि

अभूतपूर्व कवि

जब मेरी कविता कहने की बारी आई, 

काफी लोग घर जा चुके थे। 

जो कुर्सियों पर अटके थे, सुस्ता चुके थे। 

नींद मुझे भी थी आई, 

मैंने ली एक जम्हाई, और कहा, 

मेरे जागते और सोते हुए भाईओ।