अभूतपूर्व कवि

अभूतपूर्व कवि

जब मेरी कविता कहने की बारी आई, 

काफी लोग घर जा चुके थे। 

जो कुर्सियों पर अटके थे, सुस्ता चुके थे। 

नींद मुझे भी थी आई, 

मैंने ली एक जम्हाई, और कहा, 

मेरे जागते और सोते हुए भाईओ।