आम नहीं है यह रिश्ता हमारा
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आम नहीं हा यह रिश्ता हमारा ।
मैंने कहा जानती हो तुम भी तो,
कि आम नहीं है यह रिश्ता हमारा, खास है।
बाहों में है प्रिया मेरी, दिल उसका मेरे पास है।
नहीं बदलेगा यह मंज़र कभी, मेरा विश्वास है।
वह बोली- हाँ, हमारा रिश्ता कोई आम नहीं है।
पर चिंतित हूँ मैं फिर भी,
क्योंकि इसका कोई नाम नहीं है।
और इस जग में ऐसी कोई रीत नहीं है।
ऐसी अनूठी तो हमारी प्रीत नहीं है।
एक तरफा है चाहे फिर भी,
कह कर वह मुस्कुराई,
और मेरे कुछ और करीब सरक आई।
हम बाग में बेंच पर बैठे थे।
शाम का समय था, हवा में ठंडक थी।
एक दूसरे से सटने का अपना ही मज़ा था।
पर हम में उसकी कोई गुंजाईश नहीं थी।
चिंता की कोई वजह नहीं थी।
और करीब, आने, सटने के लिए जगह ही नहीं थी।
लेकिन एक प्रयत्न,
कुछ और करीब आने की,
क्रिया की खूबसूरत अनुभूती,
एक एहसास, एक भिन्न सौहाद्र,
उसकी अपनी अलग पहचान,
और मुख पर बिखरती मुस्कान।
भावों में उफान, शब्दों में झनझनाहट
किसलय प्रेम की कसमसाहट,
सब कुछ नया ही तो था। आलिंगनबद्ध हम बैठे निशब्दः,
अनायास लबों से फूटती,
हूँ-हम-आह! सी अर्थशून्य ध्वनियाँ।
अनगिनत भावनाओं को करती व्यक्त,
जिनमें खोए थे हम उस वक्त ।
दौड़ती रगों में अनुरक्त करती,
जगाती, देह में आकस्मिक,
बिजली के दौड़ने का एहसास ।
बस ऐसे ही तुम बैठी रहो मेरे पास,
यही चाहता हूँ मैं, मैंने कहा