शिमले में ठंड बहुत हो जाती है।
अच्छा ही तो है, कहती वह मुस्कुराती,
कुछ और करीब आती।
घंटों बैठे रहते थे हम बतियाते।
फिर भी बातें नहीं होती थीं खत्म।
मिलने की इच्छा नहीं होती थी कम ।
और न जाने कब, वह धीरे धीरे सब,
दिल में घर कर गया ।
यूँ ही मिलते मिलाते, गर्माहट के लिए,
कुछ और करीब आते आते,
घंटों बतियाते, इतने करीब आ गए हम,
पता ही नहीं चला।
ठहरा हुआ जो लगा करता था वक्त
वह कब निकल गया,