चाय की दुकान

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चाय की दुकान

जब मेरी कविता एक अखबार में छपी,
प्रेस रेपोरटर्ज़ (पत्रकार) घर आने लगे,
सुबह शाम घर के चक्कर लगाने लगे ।

पहले-पहल तो मैं फूला न समाता ।
साक्षात्कार के लिए झट बैठ जाता
उन्हें बैठक में बैठाता, चाय पिलाता ।
इंपोर्टेड सिगरेट पीने को देता,
बीवी बच्चों से भी मिलवाता ।
कभी-कभार कुछ और भी हो जाता,
एक-आध ह्विस्की का दौर भी हो जाता ।

इस सब खातिरदारी का अच्छा असर हुआ ।
चाय की दुकान सा मेरा घर हुआ ।
जो लोग मेरे घर हो कर जाते,
अपने मित्रों को मेरी खातिरदारी के बारे में बताते ।

कभी-कभी मुझे किसी पर शक भी हो जाता,
पर मैं शर्म-ओ-बाशर्मी उनसे पूछ न पाता ।
कैमरे के एक-दो फ्लैश पड़ते ही खुश हो जाता ।

मैं अपने बारे में लेख छपने का इंतज़ार करता रहा ।
मन ही मन डरता बार बार रहा ।
जिस बात का मुझे डर था, वही हुई ।
महीने तीन बीत गए लेकिन लेख न छपा कोई ,
मेरी कविता और न ही मेरी ज़िंदगी के बारे में ।

मैंने तो चौथे-उठाले के विज्ञापन तक देख डाले
गुमशुदा के नोटिस क्या और मैट्रीमोनियलज़ भी
पढ़े आटे-डाल के भाव और राशीफल भी ।
मगर क्या मज़ाल कि मेरा नाम तक छपा हो ।
चाय न सही, ह्विस्की ने ही कुछ किया हो ।
कभी कोई पत्रिका नहीं खरीदी थी, सब देख डाली,
पर सब मिली खाली की खाली ।

मैं निराश हो गया, काफी हताश हो गया ।
और मैं सोचने लगा कोई उपाय,
जिससे सांप तो मरे पर लाठी न टूटने पाए ।

अब मैं अपनी अलग पहचान बनाना चाहता था ।
रिपोरटर्ज़ पर खर्च किए सारे पैसे निकलवाने का
प्लान बनाना चाहता था ।

मैंने सोचा इस मामले में घरवाली से
सलाह मशवरा कर लेना उचित होगा ।
उसे अपना सहयोगी बनाने में ही हित होगा ।
वह मुफ़तखोरों से निपटना खूब जानती है ।
भेड़ की खाल पहने भेड़ियों को तो वह,
अच्छी तरह पहचानती है ।

मुझे मायूस देख कर बोली भागवान,
क्या सोच रहे हो, क्यों हो परेशान ?
तुम्हारी कविता, या कोई लेख छपने का तो
मुझे कोई आसार नहीं लगता,
पर उतरेगा कभी तुम्हारा बुखार, नहीं लगता ।

इस से पहले कि हम किसी जाने-माने लेखक के
बीवी बच्चे जाने जाएँ
मुझे तो डर है कि कहीं हम,
रूखी-सूखी दाल-रोटी से भी नया जाएँ ।

कौन पूछता है इस देश में हिन्दी को,
जब कि अंग्रेजी को ही सम्मान हासिल हो ।
फिर तुम तो उपन्यासकार भी नहीं, हिन्दी के कवि हो ।
मायूसी और दरिद्रता की छवि हो ।

कहीं छोटे-मोटे शहर में कवि-सम्मेलन में
बुलावे से ज्यादा उम्मीद करना भी फिजूल है
अगर तुम सोचते हो कि
अंग्रेजी जानने और पढ़नेवालों में
तुम्हारा ज़िक्र भी होगा,
तो यह तुम्हारी ना-समझी, तुम्हारी भूल है ।

आँखेँ मूँद लेने से तो परिस्थिति बदलती नहीं है ।
हिन्दी को भले ही राष्ट्रभाषा का दर्जा मिला हो,
पर अंग्रेजी के आगे तो इसकी पेश चलती नहीं है ।

तुम भी इस सच को जान लो तो अच्छा है ।
एक कलाकार का निजी संतोष ही,
उसके हुनर की सर्वोत्तम सराहना है ।

वरना तुम तो आजीवन गाल फुला कर फ़ोटो खिंचवाते रहोगे ।
रिपोर्टर बन आए ढोंगियों को चाय-पानी पिलाते रहोगे ।

मैंने तुम्हें समझा दिया है
अब तुम इन महमान बन आए बहरूपियों को
घर मत बुलाया करो ।
जो भी साक्षात्कार, या खातिर-तवज्जो करनी हो तुम्हें
बाहर ही कर आया करो ।

एक तो बच्चे बिल्कुल पढ़ नहीं पाते हैं
और ऊपर से बची हुई मिठाई और नमकीन भी
चट कर जाते हैं ।

तंग आ गई हूँ मैं, सुबह शाम चाय बनाते-बनाते
तुम इन सब मुफ़तखोरों को सामने ढाबे पर क्यों नहीं ले जाते ?

ढाबे का जिक्र आते ही अजब मन में हरकत हुई ।
मैंने कहा, वाह ! मेमसाहब, क्या सही फरमाया है ।
मेरे मन में एक नया आईडिया आया है ।

अपने घर के सामने हम भी एक ढाबा खोल लेते हैं ।
अपनी ज़िंदगी को एक नयाँ मोड़ देते हैं ।
तुम मैनेजर बन बैठा करना,
मैं लोगों को पकड़ कर लाया करूँगा ।

चाय, नमकीन, बिस्किट उन्हें अपने ही ढाबे पर खिलाया करूँगा ।
फिर बटुआ घर भूल आने का नाटक कर
अक्सर पैसे उन्हीं से दिलवाया करूँगा ।

ऐसे हमारा ढाबा भी चल पड़ेगा,
और घर की आमदनी का
उपयुक्त साधन भी निकल पड़ेगा ।

बीवी को मेरी स्कीम पसंद आ गई ।
घर में खुशी की लहर छा गई ।
पहले-पहल तो बहुत से लोग,
चाल की लपेट में आ गए ।

इंटरव्यू तो ले गए पर साथ में
चाय का बिल भी चुका गए ।

अब क्या लिखेंगे वे किस को परवाह थी ।
उनके बटुओं पर टिकी रहती मेरी निगाह थी ।

धीरे-धीरे सब ओर खबर फैल गई ।
पत्रकार घर आने से कतराने लगे ।
हम दंपति भी छोड़ कविता की धुन,
चाय की दुकान चलाने लगे ।

पत्नी खुश रहने लगी,
मैंने भी सब खुश भुला दिया
कवि की भावनाओं को मैंने मीठी नींद सुला दिया ।

कविता का अंतिम-संस्कार
और चाय की दुकान का नामकरण ,
मैंने एक ही दिन किया ।
मैंने अपनी चाय की दुकान का नाम ही "रचना" रख दिया ।

किसी को लगती है नीरस,
किसी को पसंद आती है,
परंतु "रचना" में बनी हर चाय की प्याली,
अपनी सही कीमत दिलवाती है ।

फीकी, नीरस, कुछ, मधुर, सरस कविताएँ मेरी,
काश! सब चाय की प्यालियाँ ही बन जाएँ ।