आम नहीं है यह रिश्ता हमारा

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तो वह बोली लेकिन,
फिर भी बुझती तो नहीं प्यास।
और यही मैं चाहती हूँ, कि यह न कभी बुझे।
कभी कम न हो।
इस रिश्ते का कोई नाम,
होने न होने का एहसास,
न कोई चिंता सताये।

बस ऐसे ही सिर को मेरे सीने से सटाए ,
लेटे रहो तुम मेरे पास।
छूते रहें मेरे चेहरे को तुम्हारे श्वास।
और उनकी हल्की ऊष्मा का आभास,
गहराता रहे मेरे दिल में, और की प्यास ।
कोई गम न हो,न रहे ।
दिल दिल से दिल की बात खुद ही कहे।

शिमले में ठंड बहुत हो जाती है।
अच्छा ही तो है, कहती वह मुस्कुराती,
कुछ और करीब आती।
घंटों बैठे रहते थे हम बतियाते।
फिर भी बातें नहीं होती थीं खत्म।
मिलने की इच्छा नहीं होती थी कम ।

और न जाने कब, वह धीरे धीरे सब,
दिल में घर कर गया ।
यूँ ही मिलते मिलाते, गर्माहट के लिए,
कुछ और करीब आते आते,
घंटों बतियाते, इतने करीब आ गए हम,
पता ही नहीं चला।
ठहरा हुआ जो लगा करता था वक्त
वह कब निकल गया,

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