गृहस्थ आश्रम

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अध्याय 1 - बीवी को पत्र

अब तो बिलकुल उम्मीद नहीं रही है।
किताबें उसकी वर्मा की लड़की ले गयी है।
बैट उसका सिंग के साहब-जादे ने तोड़ दिया है।
बेबी की गुड़िया का कान नीना ने मरोड़ दिया है।

वी सी आर एक हफ्ते से शर्मा जी ले गए हैं।
अपनी बेटी की शादी का कार्ड भी दे गए हैं।
सच मुझसे ये सब संभल नहीं रहा है।
घर मुझसे दरअसल चल नहीं रहा है।

सूना सूना है सब, दम घुटता जा रहा है।
जल्दी वापिस आ जाओ,
सब लुटता जा रहा है।

जितनी तुम देर लगाओगी,
कसम से उतनी ही पछातोगी।
ले जायेंगे पड़ोसी सब कुछ,
और मुझे शायद पुलिस ले जायेगी।
खाली खाली घर तुम पहचान भी न पाओगी।

इसलिए जल्दी से अपना टिकेट बुक करवा लो।
वापिस आकर अपने घर को संभालो।
किसी तरह मुझे इस जंजाल से निकालो।

ठीक है, मैं घर का सारा ही काम किया करुँगा।
जलेगा जो हाथ तो, खुद को ही गाली दिया करुँगा।
आह! भी नहीं करूँगा कभी, सब्र का घूँट पीया करुँगा।
पर तुम आकर 'एक्सटर्नल अफ्फैर्ज़' को संभालो।
अपना प्यारा घर लुटने से बचालो।

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