गृहस्थ आश्रम

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अध्याय 1 - बीवी को पत्र

तुम थीं घर में तो कुछ कायदा,क़ानून था।
चाहे दूध वाले का साल से पेंडिंग हनीमून था।
फिर भी वह तुम्हें इज़हार न कर सका।
ले जा कर गवालन को पहाड़ पर, प्यार कर न सका।

तुम्हारे जाते ही वो उल्लू चला गया है।
लगता है काफी खर्चा कर के आएगा।
फिर से दबा कर दूध में पानी मिलाएगा।

पड़ोसियों के बच्चे यहाँ अक्सर चले आते हैं।
नमक, तेल, घी, हल्दी आदी अक्सर माँग कर ले जाते हैं।
किस-किस को क्या दिया है याद नहीं।
सच यहाँ तो कटोरियों तक का भी हिसाब नहीं।

रसोई खाली खाली सी नज़र आने लगी है।
मिसेज़ वर्मा तो हफ्ते में दो बार खीर पकाने लगी है।
आती है मुझे खिलाने, कटोरी देने के बहाने।
दो मिनिट बैठ भी जाती है। अच्छी तो लगती है खीर पर उसमें,
अपनी ही दी हुई किशमिश तैरती नज़र आती है।

बैठी बैठी यह भी पूछ लेती है,
मीनाक्षी कब आ रही है?
लगता है वो 'मेनू' आज-कल उसी हिसाब से बना रही है।

मैंने तो कह दिया, पता नहीं, कुछ कह कर नहीं गई है।
सुना है वो आज-कल खबर फैला रही है कि,
मिसेज़ बक्शी भाग गई है।

मिसेज़ गुप्ता ने तो सौदा मंगवाना ही छोड़ दिया है। पन्सारी से शायद नाता ही तोड़ लिया है।
पहले स्टोव, फिर तेल, अब माचिस भी माँग कर ले गयी है।
दालें माँगने की तो आदत उसकी नईं नहीं है।

लेकर गई है तेल वो शायद बहू को डराने के लिए।
या ढूँढ रही है मौक़ा उसे जलाने के लिए।
देते हुए नहीं सोचा मैंने पर अब पछता रहा हूँ।
सुबह शाम राम नाम जपता जा रहा हूँ।

लगता है वे एक दिन बहू को जला ही देंगे, और खुद को बचाने के लिए, मेरा नाम लगा देंगे।
और पुलिस माचिस, पीपी पर मेरे फिंगर प्रिंट्स पाएगी।
आती है मुझे खिलाने, कटोरी देने के बहाने।
लगता है अब मुझे पुलिस पकड़ ले जाएगी।

सुना है, वे आज-कल अफवाह फैला रहे हैं,
कि मेरे उनकी बहू के संग नाजायज़ सम्बन्ध हैं,
ऐसा सब को बता रहे हैं।

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