इसलिए झगड़ा ही खत्म कर डालो,
इनको जड़ से ही कटवा लो।
पर ऐसा घर पर ही करना,
लेकर पत्नी की राय,
नहीं तो कहीं तुम्हें पहचानने से,
वो मुकर ही न जाए।
एक दिन जाओ तुम घर,
रास्ते से मूँछें कटवा कर,
और नज़र पलट चल दे मैडम,
समझ तुम्हें ज्येष्ठ या देवर,
सोचो ज़रा क्या होगा तब।
पत्नी निकाल घूँघट चल देगी जब।
होगा एक और प्रहार प्रबल,
जब बच्चे पुकारेंगे — अंकल, अंकल।
खैर जो जी में आये करो भई,
तुम्हारी ही चीज है।
हमने तो बात सयानी कही है,
न ही कटवाना इसे,
यदि बची मर्दानगी की निशानी यही है।
******समाप्त******